Wednesday, September 19, 2012

गुस्सा

किस पर गुस्सा करूँ मैं
सरकार पर या हालात पर
दोनों का ही हिस्सा हूँ मैं !

किस पर गुस्सा करूँ मैं
भाग्य पर या नाकाबिलियत पर
दोनों ही तो हूँ मैं !

किस पर गुस्सा करूँ मैं
रात पर या दिन के उजास पर
दोनों से ही तो बना हूँ मैं !

गुस्से से अगर होता समाधान
समस्याओं का निदान
लहू अपना पी जाता मैं !

2 comments:

नादिर खान said...
This comment has been removed by the author.
नादिर खान said...

सही है मजबूरीयों मे पिस्ता है आम आदमी ।
कुछ रचनाएं यहाँ भी है

http://www.openbooksonline.com/profile/Nadir