किस पर गुस्सा करूँ मैं
सरकार पर या हालात पर
दोनों का ही हिस्सा हूँ मैं !
किस पर गुस्सा करूँ मैं
भाग्य पर या नाकाबिलियत पर
दोनों ही तो हूँ मैं !
किस पर गुस्सा करूँ मैं
रात पर या दिन के उजास पर
दोनों से ही तो बना हूँ मैं !
गुस्से से अगर होता समाधान
समस्याओं का निदान
लहू अपना पी जाता मैं !
2 comments:
सही है मजबूरीयों मे पिस्ता है आम आदमी ।
कुछ रचनाएं यहाँ भी है
http://www.openbooksonline.com/profile/Nadir
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